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Bruger:Dr.Houskumar Vitthal Patil

Fra Wikipedia, den frie encyklopædi

जमीन सेे उगता पौधा

उस पर मैं खिलता हूँ

अंबर के नीचे रहता हूँ

चाहे ग्रीष्म हो

चाहे वर्षा

चाहे शीत


हवा के झोंके से नाचता गाता हूं

प्रचंड ताप पवन के झोंकों को भी हंसकर सह लेता हूं

अपनी सुंदरता कोमलता सुगंध से

मैं सबको करता हूं प्रसन्न

मैं भी रहता हूं प्रसन्न

सब कहते हैं मुझे सुमन

मेरे अगल बगल कांटे ही कांटे रहते हैं

वो मेरी हिफाज़त करते है

वायु के झोंकों से वो मुझको चुभते हैं

फिर भी मैं कभी आह नहीं भरता हूं

कोई आए मुझे तोड़ने के लिए फिर भी मैं उनके सामने खड़ा हाथ जोड़े

कभी किसी के गले की माला बनता हूं

कभी भगवान के चरणों पर

तो कभी भगवान के शीश पर

अपने आप को समर्पित करता हूं

दिन में खिलता हूं रात में न डरता हूं

सुख दुख दोनों समय में एक जैसा ही रहता हूं

मैं हूं सुमन

मैं हूं सुमन

मैं हूं प्रसन्न

मैं हूंूं प्रसन्न


वह हिफाजत मेरी वायु के झोंके से चुभते हैं कांटे मुझको फिर भी मैं कभी आ नहीं भरता हूं चाहे मुझे कोई तोड़े तो भी मैं हाथ जोड़े कोई मुझे माला बनकर पहन आता है कोई मुझे भगवान के शीश पर चढ़ाता है तो कोई मुझे सहरा बनाता है दिन में खेलता हूं रात में ना डरता हूं सुख दुख में एक जैसा ही रहता हूं मैं हूं सुमन ता््ा्ा््ाा््ा्ा््ा््ा्ा््ा्ा््ाा््ा्ा््ा्ा््ाा््ा्ा््ा््ा्ा््ा्ा््ाा््ाा््ा्ा